गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा दौर-ए-लैल-ओ-नहार ने मारा मर रहा हूँ मगर नहीं मरता ख़लिश-ए-इंतिज़ार ने मारा सख़्त-जानी मिरी जो सुन पाई दम न फिर तेग़-ए-यार ने मारा वस्ल में भी ये मुज़्तरिब ही रहा इस दिल-ए-बे-क़रार ने मारा हम तो जीते अभी मगर 'बेख़ुद' सितम-ए-रोज़गार ने मारा