गर्दिश-ए-जाम भी है रक़्स भी है साज़ भी है जिस में नग़्मों का तलातुम है वो आवाज़ भी है इतना सादा भी उसे ऐ दिल-ए-पुर-शौक़ न जान इल्तिफ़ात एक निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ भी है मुद्दआ' उन का समझ में नहीं आता ऐ दिल बे-सबब है ये तग़ाफ़ुल कि कोई राज़ भी है ग़र्क़-ए-कैफ़ियत-ए-आहंग-ए-तरब सुन तो सही ज़िंदगी दर्द में डूबी हुई आवाज़ भी है तोड़ डालेंगे क़फ़स आज असीरान-ए-क़फ़स अज़्म-ए-परवाज़ भी है क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ भी है मेरी आँखों से ढलकते हुए हर अश्क में आज अक्स-ए-अंजाम भी है सूरत-ए-आग़ाज़ भी है कौन जाने ये मिरे दिल के सिवा ऐ 'मुज़्तर' उस की इक जुम्बिश-ए-लब सिलसिला-ए-राज़ भी है