गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को किया किस ने निहाँ दामन की कलियों से गुलिस्ताँ को उड़ाया चुटकियों में मेरे ज़र्रे ने बयाबाँ को मिरे क़तरे ने पानी कर दिया हर मौज-ए-तूफ़ाँ को मिरी कश्ती भँवर से खेलने का शौक़ रखती है ये किस ने कर दिया ख़ामोश यारब मौज-ए-तूफ़ाँ को ये क्या नग़्मा था छेड़ा जो यकायक क़ल्ब-ए-मुज़्तर ने कि मेरी नय ने रक़्साँ कर दिया सारे गुलिस्ताँ को मैं हूँ वो क़तरा-ए-शबनम कि चमका तेरे परतव से लगी हैं खींचने किरनें मिरी मेहर-ए-दरख़्शाँ को मिरे ज़ौक़-ए-फ़ना पर ज़िंदगी है ख़िज़्र की क़ुर्बां मिरे तल्ख़ाना-ए-ग़म में डुबो दो आब-ए-हैवाँ को कलीम-ए-तूर-ए-मा'नी हूँ यद-ए-बैज़ा है मेरा दिल मुनव्वर कर दिया जिस ने मिरे चाक-ए-गरेबाँ को