गरेबान-ए-क़बा-ए-ज़ीस्त में इक तार बाक़ी है अजल दम ले अभी तो मंज़िल-ए-दुश्वार बाक़ी है ज़रा ऐ दिल मोहब्बत का तराना तेज़-तर कर दे अभी कुछ इम्तियाज़-ए-काफिर-ओ-दीं-दार बाक़ी है सितमगारी को तन्हा क्यूँ शिआ'र-ए-आसमाँ समझूँ अभी शरह-ए-मिज़ाज-ए-चर्ख़-ए-कज-रफ़तार बाक़ी है बला-नोश इस ख़राबात-ए-जहाँ से किस क़दर गुज़रे लब-ए-साग़र पे ज़िक्र-ए-रिन्द-ए-ख़ुश-अतवार बाक़ी है रहे गर्म-ए-तवाफ़-ए-दैर-ओ-का'बा मुद्दतों लेकिन तमन्ना-ए-तवाफ़-ए-आस्तान-ए-यार बाक़ी है