गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से आसमाँ भर गया है चीलों से सूली चढ़ने लगी है ख़ामोशी लोग आए हैं सुन के मीलों से कान में ऐसे उतरी सरगोशी बर्फ़ फिसली हो जैसे टीलों से गूँज कर ऐसे लौटती है सदा कोई पूछे हज़ारों मीलों से प्यास भरती रही मिरे अंदर आँख हटती नहीं थी झीलों से लोग कंधे बदल बदल के चले घाट पहुँचे बड़े वसीलों से