ना-रसाई है कि तू है क्या है याद कर के जिसे जी डूबा है ऐ ग़म-ए-जाँ तिरे ग़म-ख़्वारों का सब्र अब हद से सिवा पहुँचा है आईना था कि मिरा पैकर था तेरी बातों से अभी बिखरा है आँख किस लफ़्ज़ पे भर आई है कौन सी बात पे दिल टूटा है मिरे हाथों की लकीरों में कोई ज़िंदगी बन के छुपा बैठा है आसमाँ झाँक रहा है 'ख़ालिद' चाँद कमरे में मिरे उतरा है