गर्मी जो आई घर का हवा-दान खुल गया साहिल पे जब गया तो हर इंसान खुल गया पहले तो लांग-मार्च के हक़ में दिया बयान फिर 'क़ादरी' को देख के 'इमरान' खुल गया इक मौलवी की आँख में बीनाई आ गई जब रेल में किसी का गरेबान खुल गया तुम नाश्ते की मेज़ पे बैठी हो इस तरह यूँ लग रहा है जैसे नमक-दान खुल गया दो चार दिन से मेरी समाअत ब्लाक थी तुम ने ग़ज़ल पढ़ी तो मिरा कान खुल गया लौटे वो जब सफ़र से कनीज़ों ने ये कहा भागो जनाब-ए-शैख़ का सामान खुल गया मेरे ख़ुतूत पढ़ के वो रोती है इस तरह लगता है 'मीर-अनीस' का दीवान खुल गया मेरे इशाइए का था टाइम इशा के ब'अद आग़ाज़-ए-गुफ़्तुगू में ही मेहमान खुल गया बज़्म-ए-सुख़न में पूरी मुसद्दस उंडेल कर हद से ज़ियादा 'ख़ालिद'-ए-इरफ़ान खुल गया