वो मिरे शाना-ब-शाना भी तो हो सकता है ये सफ़र मेरा सुहाना भी तो हो सकता है ये ज़रूरी तो नहीं क़स्द-ए-सफ़र मंज़िल हो मुद्दआ' ख़ाक उड़ाना भी तो हो सकता है इतनी शिद्दत से न कर याद मिरे दिल उस को कि अभी उस को भुलाना भी तो हो सकता है जंग में सब कहाँ शमशीर-ज़नी करते हैं काम लाशों को उठाना भी तो हो सकता है इस में कुछ आयतें दोज़ख़ की भी शामिल कर लो बाज़ लोगों को डराना भी तो हो सकता है दिल को ज़ख़्मों से ज़रा और सजा लो 'अब्बास' ये उसे जा कि दिखाना भी तो हो सकता है