गर्मी निगाह-ए-दोस्त की दिल में लिए हुए गुज़रे जहाँ को साज़-ए-मोहब्बत दिए हुए बे-कैफ़ियों के बोझ से दबती हयात में तुम आए नूर-ए-निकहत-ओ-नग़मा लिए हुए सुनसान राहें जाग उठी आ रहे हैं वो जल्वों से हर क़दम पे चराग़ाँ किए हुए ए'जाज़ उस तबस्सुम-ए-जानाँ का देखिए ग़म-हा-ए-रोज़गार में हैं हम जिए हुए हो हुस्न की शराब की सहबा-ए-इश्क़ हो तुम हो पिए हुए तो हैं हम भी पिए हुए आशुफ़्तगी में आने लगा है मज़ा मुझे मुद्दत हुई है चाक गरेबाँ किए हुए मुझ तिश्ना-लब तक आए न आए वो दौर-ए-जाम लेकिन तिरा ख़याल है साहब लिए हुए साक़ी की है नवाज़िश उसी पर ही मुनहसिर क्या ज़र्फ़ है जो हाथों में हम हैं लिए हुए किस इम्तिहाँ को खेल समझ कर न खेले हम किस रह को है न अहल-ए-वफ़ा तय किए हुए आए हैं आज बज़्म में उस शोख़ की 'हबीब' आँखों में शौक़ दिल में तमन्ना लिए हुए