गर्मियाँ शोख़ियाँ किस शान से हम देखते हैं क्या ही नादानियाँ नादान से हम देखते हैं ग़ैर से बोसा-ज़नी और हमें दुश्नामें मुँह लिए अपना पशीमान से हम देखते हैं फ़स्ल-ए-गुल अब की जुनूँ-ख़ेज़ नहीं सद-अफ़्सोस दूर हाथ अपना गरेबान से हम देखते हैं आज किस शोख़ की गुलशन में हिना-बंदी है सर्व रक़्साँ हैं गुलिस्तान से हम देखते हैं 'अख़्तर'-ए-ज़ार भी हो मुसहफ़-ए-रुख़ पर शैदा फ़ाल ये नेक है क़ुरआन से हम देखते हैं