ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम गुलशन-ए-दहर में सबा हो तुम बे-मुरव्वत हो बेवफ़ा हो तुम अपने मतलब के आश्ना हो तुम कौन हो क्या हो क्या तुम्हें लिक्खें आदमी हो परी हो क्या हो तुम पिस्ता-ए-लब से हम को क़ुव्वत दो दिल-ए-बीमार की दवा हो तुम हम को हासिल किसी की उल्फ़त से मतलब-ए-दिल हो मुद्दआ हो तुम यही आशिक़ का पास करते हैं क्यूँ जी क्यूँ दर-प-ए-जफ़ा हो तुम उसी 'अख़्तर' के तुम हुए माशूक़ हँसो बोलो उसी को चाहो तुम