गश्त न कर इधर-उधर बे-ख़बरी जहाँ में है अपने ही दिल में ग़ौर कर देख मकीं मकाँ में है रात तमाम खो चुका नींद से सैर हो चुका जाग कि ख़ूब सो चुका कूस-ए-अजल फ़ुग़ाँ में है किस से मिसाल तुझ को दूँ ग़ैर कहाँ जो नाम लूँ हाल कहूँ तो क्या कहूँ क़ुफ़्ल-ए-अदब ज़बाँ में है पाँव बहुत थका चुका शाम का क़ुर्ब आ चुका दौड़ कि वक़्त जा चुका तू पस-ए-कारवाँ में है देख कहीं दग़ा न हो जिस्म से जाँ जुदा न हो जल्द सँभल ख़ता न हो तीर-ए-अजल कमाँ में है मंज़िल-ए-गोर तंग है पा-ए-फ़राग़ लंग है तुझ को अभी उमंग है और ही कुछ गुमाँ में है तुझ को 'नसीम' क्या हुआ दीद-ए-जहाँ से दिल उठा रंग-ए-फ़रेब जा-ब-जा हर गुल-ए-बोस्ताँ में है