कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब किफ़ायत अपने को बस एक अपने ग़म की किताब नहीं ख़याल सिवा उस के और है दिल में जो मकतब इश्क़ में जैसे पढ़ा सनम की किताब ख़त आने से नहीं ख़ातिर जमा हुए मुतलक़ इसे तो ख़त कहूँ या सब्ज़ा या सितम की किताब शब-ए-फ़िराक़ से तेरी गया हूँ सब कुछ भूल विक़ाया कंज़-ओ-हिदाया सभी इलम की किताब हुआ ब-मदरसा-ए-इश्क़ जब से तालिब-ए-इल्म बहुत है अपने मुताला को एक दम की किताब न बरहमन हूँ न मुल्ला न मौलवी न अतीत जो पोथी दैर की पांचों ओ या हरम की किताब किताब-ए-हुस्न की 'क़ासिम-अली' मुताला कर बनाई सानेअ' ने सनअ'त से यक-क़लम की किताब