ग़ुबार-ए-दश्त-ए-यक्सानी से निकला ये रस्ता मेरी बे-ध्यानी से निकला न हम वहशत में अपने घर से निकले न सहरा अपनी वीरानी से निकला न निकला काम कोई ज़ब्त-ए-ग़म से न अश्कों की फ़रावानी से निकला न आँखें ही हुईं ग़रक़ाब-ए-दरिया न कोई अक्स ही पानी से निकला उधर निकली वो ख़ुश्बू शहर-ए-गुल से इधर मैं बाग़-ए-वीरानी से निकला हुआ ग़र्क़ाब शहर-ए-जाँ तो ये दिल ये दरिया अपनी तुग़्यानी से निकला जो निकला शाम-ए-दश्त-ए-कर्बला से सितारा ख़ंदा-पेशानी से निकला