ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा बू-ए-गुल सा है उड़ाता मुझे जानाँ मेरा अपनी गर्मी से बरिश्ता हुआ हुस्न-ए-रुख़-ए-यार लाला-रंग आतिश-ए-गुल से है गुलिस्ताँ मेरा कभू गुज़रा था कोई आबला-पा देख वफ़ा रोवे अब लग है लहू ख़ार-ए-बयाबाँ मेरा इश्क़ ख़ुर्शीद-रुख़ों से जो किया मैं ने जुनूँ दाग़ जूँ सुब्ह हुआ चाक-ए-गरेबाँ मेरा कीमिया हुस्न की है मुँह तो ज़रा उस को लगा जाम-ए-मय से भी गया क्या दिल-ए-गिर्यां मेरा चोर कर दिल को इनायत किया संगीं दुश्नाम शीशे को तोड़ के पत्थर दिया तावाँ मेरा क़त्ल-ए-'उज़लत' से न मुंकिर हो कि गुल के मानिंद लब पे हँसता है तिरे ख़ून-ए-नुमायाँ मेरा