जो मरीज़ इश्क़ के हैं उन को शिफ़ा है कि नहीं ऐ तबीब उन की भी दुनिया में दवा है कि नहीं ख़ूब-रू जितने हैं आलम में जफ़ाकार हैं सब याद क्या जानें उन्हें तौर-ए-वफ़ा है कि नहीं तंग इतना है ज़माना कि चमन में गुल तक सुब्ह-दम चाक-गरेबाँ ही सबा है कि नहीं मिरी बे-ताबी के अहवाल को शब के उस से नामा-बर तू ने ज़बानी भी कहा है कि नहीं ज़ुल्म है ये तो कि दिल लीजिए और रहिए ख़फ़ा कहीं इंसाफ़ ज़माने में रहा है कि नहीं शैख़ कहते हैं मुझे दैर न जा काबा चल बरहमन कहते हैं क्यूँ याँ भी ख़ुदा है कि नहीं अपने यारों में कोई जा के अदम से न फिरा क्यूँ 'मुहिब' उन की ख़बर लानी बजा है कि नहीं