ग़ुरूर-ए-बज़्म-ए-तरब को नमी ने मार दिया हमारे ज़ब्त को तेरी कमी ने मार दिया दर-ए-नजफ़ से ज़रा इख़्तियार हासिल कर न कह सकेगा कभी बेबसी ने मार दिया दरून-ए-ख़ाना-ए-हस्ती ये कैसा शोर उठा बदन में काल पड़ा बेकली ने मार दिया क़लम ने लौह पे सर रख के ऐसा गिर्या किया ग़ज़ल ने बैन किए शाइ'री ने मार दिया दुआ जो मौत की माँगी तो ये जवाब मिला न मर सका वो जिसे ज़िंदगी ने मार दिया समझ रहा था उसे हासिल-ए-हयात मगर उठा हिजाब मुझे आगही ने मार दिया उन्हीं पे होगी 'शजर' गुफ़्तुगू ज़माने में कुछ ऐसे लोग जिन्हें ख़ामुशी ने मार दिया