ख़ार तो फिर भी ख़ार होते हैं गुल भी बे-ए'तिबार होते हैं ग़म से जो हम-कनार होते हैं बस वही ग़म-गुसार होते हैं जिन के पीछे न कोई मतलब हो रिश्ते वो ख़ुश-गवार होते हैं धोका खाते हैं बस वही अक्सर जो बहुत होशियार होते हैं हासिदों के करम ही काफ़ी थी दोस्त क्यों बर्क़-बार होते हैं जिन की घुट्टी ही में हो बे-शर्मी वो कहीं शर्मसार होते हैं ऐसे फूलों का क्या करें 'नामी' जिन के पहलू में ख़ार होते हैं