ग़ुरूर-ए-जाँ को मिरे यार बेच देते हैं क़बा की हिर्स में दस्तार बेच देते हैं ये लोग क्या हैं कि दो-चार ख़्वाहिशों के लिए तमाम उम्र का पिंदार बेच देते हैं जुनून-ए-ज़ीनत-ए-आराइश-ए-मकाँ के लिए कई मकीं दर-ओ-दीवार बेच देते हैं ज़रा भी निर्ख़ हो बाला तो ताजिरान-ए-हरम गलीम ओ जुब्बा ओ दस्तार बेच देते हैं बस इतना फ़र्क़ है यूसुफ़ में और मुझ में 'फ़राज़' कि उस को ग़ैर मुझे यार बेच देते हैं