ग़ुरूर-ए-जल्वा-ए-इरफ़ाँ है देखिए क्या हो बड़े अँधेरे में इंसाँ है देखिए क्या हो चले हैं तोड़ने ज़िंदाँ को चंद दीवाने सवाल-ए-अज़्मत-ए-ज़िंदाँ है देखिए क्या हो क़रीब-ए-शादी-ए-मर्ग आ चला है दीवाना नक़ाब सिलसिला-जुम्बाँ है देखिए क्या हो सदाक़तें भी हैं अब इत्तिहाम की ज़द पर बशर बशर से गुरेज़ाँ है देखिए क्या हो हवाएँ रुख़ तो बदलने लगी हैं ऐ 'ग़ौसी' शबाब-ए-जश्न-ए-चराग़ाँ है देखिए क्या हो