हर चंद अभी ख़ुद पर ज़ाहिर में और मिरे अहबाब नहीं यारों पे फ़िदा होने वाले कम-याब सही नायाब नहीं दुनिया का भरम क़ाएम रखना औरों के लिए जीना मरना इस दौर की वो तहज़ीब नहीं इस दौर के वो आदाब नहीं कश्ती पे थपेड़ों का है असर तीखे सही मौजों के तेवर फिर भी पस-ए-मंज़र में यारो साज़िश है कोई गिर्दाब नहीं महबूब-अदा हैरत-अफ़्ज़ा ख़ुश्बू-सीरत जल्वा-सूरत ये ख़्वाब हमारे अपने हैं ये ख़्वाब पराए ख़्वाब नहीं हर मौज-ए-रवाँ बे-फ़ैज़ रही बे-साया शजर जैसी उभरी दरिया भी सराब-आसा निकला इक लब-तिश्ना सैराब नहीं बाज़ार-ए-वफ़ा और बे-रौनक़ ये तो अलमिय्या है 'ग़ौसी' हीरे हैं मगर ख़ुश-ताब नहीं मोती हैं मगर पुर-आब नहीं