गाँव में अब गाँव जैसी बात भी बाक़ी नहीं यानी गुज़रे वक़्त की सौग़ात भी बाक़ी नहीं तितलियों से हल्के फुल्के दिन न जाने क्या हुए जुगनुओं सी टिमटिमाती रात भी बाक़ी नहीं मुस्कुराहट जेब में रक्खी थी कैसे खो गई हैफ़ अब अश्कों की वो बरसात भी बाक़ी नहीं बुत-परस्ती शेव-ए-दिल हो तो कोई क्या करे अब तो काबे में हुबल और लात भी बाक़ी नहीं छत पे जाना चाँद को तकना किसी की याद में वक़्त के दामन में वो औक़ात भी बाक़ी नहीं