गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का By Ghazal << कूज़ा-गर मैं तिरे किस ख़्... जैसे सुब्ह को सूरज निकले ... >> गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का तरह्हुम हो गया फ़रियाद-रस का रहे साबित-क़दम राह-ए-वफ़ा में शिकस्ता दिल हुआ पा-ए-हवस का हुज़ूरी हो गई ग़ीबत में हम को तरन्नुम दिल में है बाँग-ए-जरस का करें उस शोख़ से हम क़त्-ए-उल्फ़त नहीं ये काम 'साक़ी' अपने बस का Share on: