कूज़ा-गर मैं तिरे किस ख़्वाब का चेहरा हो जाऊँ सिर्फ़ इक जिस्म की मोहलत है मैं क्या क्या हो जाऊँ तुझ में और मुझ में बस इक फ़र्क़ वफ़ा ही का है मैं अगर तर्क वफ़ा कर दूँ तो तुझ सा हो जाऊँ मुझ को मेरे ही अँधेरे ने छुपा रक्खा है जो तिरी ज़ात में आ जाऊँ सितारा हो जाऊँ सोचते सब हैं कहानी तो मुकम्मल हो जाए चाहता कोई नहीं है कि मैं उस का हो जाऊँ चार दिन क़ैद में रह कर ये तमन्ना भी गई पहले लगता था कि ऐ काश परिंदा हो जाऊँ मैं तो बस एक तसव्वुर हूँ वही रहने दे ऐसे भी सोच न मुझ को कि मैं चेहरा हो जाऊँ सब की आँखों में खटकती है हमारी क़ुर्बत शहर का शहर लगा है कि अकेला हो जाऊँ इश्क़ में सारा कमाल अस्ल में फ़ुर्क़त का है जो भी हो जाए जुदा मुझ से मैं उस का हो जाऊँ