गीत मेरे हैं मगर नूर-ए-सुख़न उस का है हक़ तो ये है कि मिरा जौहर-ए-फ़न उस का है फूल तो फूल हैं काँटों की रविश भी उस की बाग़बाँ कुछ भी कहे रंग-ए-चमन उस का है सब्ज़ मौसम की मिरे दर पे जो दस्तक जागी मैं ने जाना कि यही तर्ज़-ए-सुख़न उस का है मौज-ए-गुल बाद-ए-सबा रंग-ए-चमन आब-ए-रवाँ सारे आलम में अगर है तो चलन उस का है उस की पहचान फ़क़त कोह-ओ-समुंदर से नहीं ज़र्रा-ए-ख़ाक भी ख़ुर्शीद-ए-वतन उस का है इस से क्या फ़र्क़ पड़े तर्ज़-ए-नवा-संजी पर हम्द उस की है लबों पर कि भजन उस का है मैं यम-ए-वक़्त में बहता हुआ तिनका 'नामी' ये ज़मीं उस की तमाशा-ए-ज़मन उस का है