बस हो चुका हुज़ूर ये पर्दे हटाइए सब मुंतज़िर हैं सामने तशरीफ़ लाइए आवाज़ में तो आप की बे-शक ख़ुलूस है लेकिन ज़रा नक़ाब तो रुख़ से हटाइए हम मानते हैं आप बड़े ग़म-गुसार हैं लेकिन ये आस्तीन में क्या है दिखाइए अब क़ाफ़िले के लोग भी मंज़िल-शनास हैं आख़िर कहाँ का क़स्द है खुल कर बताइए बादा-कशों की अस्ल जगह मय-कदे में है किस ने कहा कि आप भी मिम्बर पे आइए