गहरे समुंदरों में बिल-आख़िर उतर गए ख़ुश-फ़हमियों का ज़हर पिया और मर गए हम अहद-ए-नौ के लोग भी अल्लाह की पनाह कासा उठाए हाथ में अपने ही घर गए कुछ लोग उड़ रहे थे हवाओं के दोष पर क्या जाने किस ख़याल से हम भी उधर गए कल रात पी-पिला के बड़ी मस्तियाँ हुईं आख़िर को थक-थका के फिर अपने ही घर गए क्या क्या न बन रहे थे मियाँ हज़रत-ए-'नदीम' सूरज को छूने निकले थे साए से डर गए