घड़ी घड़ी है हमें अपने मेहरबाँ का ख़याल न कुछ ज़मीं की ख़बर है न आसमाँ का ख़याल ये बे-ख़ुदी है कि जिस दिन से दिल लगा बैठे कहाँ का होश कहाँ की ख़बर कहाँ का ख़याल उड़े हुए हैं रक़ीबों के होश पे अब तक जो दिल में आप के आया था इम्तिहाँ का ख़याल अदू से हँसते रहे रात भर सर-ए-महफ़िल किया न तुम ने मिरे चश्म-ए-ख़ूँ-फ़शा का ख़याल किसी को दो न सर-ए-बज़्म बे-धड़क गाली ख़ुदा के वास्ते रक्खो ज़रा ज़बाँ का ख़याल क़दम जो भूल के रक्खें रह-ए-मोहब्बत में तो ख़िज़्र को भी न हो उम्र-ए-जावेदाँ का ख़याल लगा न ख़ुल्द में भी दिल मैं क्या बयाँ करूँ वहाँ भी मुझ से न छूटा तिरे मकाँ का ख़याल मैं उस तरफ़ कभी रुख़ भूल कर नहीं करता मैं क्या बताऊँ जब आता है पासबाँ का ख़याल ख़ुदा के वास्ते मानो मिरा कहा ऐ 'रंज' ख़ुदा के वास्ते छोड़ो ये है कहाँ का ख़याल