घड़ी की सूइयाँ टिक-टिक सुना रही हैं मुझे गुज़रते वक़्त से शायद डरा रही हैं मुझे तिरे बयान को लफ़्ज़ों की क्या ज़रूरत है कि ये ख़मोशियाँ सब कुछ बता रही हैं मुझे तो क्या हुआ जो तिरा प्यार मिल नहीं पाया तिरी ये नफ़रतें भी रास आ रही हैं मुझे हवा की शोख़ियाँ बतला रही हैं तेरा पता हसीन तितलियाँ रस्ता दिखा रही हैं मुझे शब-ए-फ़िराक़ मिरे हम-नवा तिरी यादें ग़मों की ताल पे हर दम नचा रही हैं मुझे कोई तो हो जो मुझे रोक ले सदा दे कर मिरी ये हसरतें हर जा घुमा रही हैं मुझे 'ज़की' ये राह के पत्थर भी मेरे रहबर हैं कि इन की ठोकरें चलना सिखा रही हैं मुझे