मिरे रक़ीब से हँस कर कलाम करते हुए गुज़र गया है वो मुझ को सलाम करते हुए अजब कि डूबने वाला तो मुतमइन है मगर डरा हुआ है समुंदर ये काम करते हुए वो जिस के सामने सस्ते में रख दिया ख़ुद को उलझ पड़ा है वो गाहक भी दाम करते हुए मिरे वजूद पे क़ाबिज़ हुआ वो पल भर में नज़र की तेग़ से दिल को ग़ुलाम करते हुए बचे-कुछे से ये पल भी गुज़र ही जाएँगे किसी की याद में साहिल पे शाम करते हुए क़सम ख़ुदा की ये गिर्या न देख पाऊँगा ख़ुशी से जाइए रिश्ता तमाम करते हुए 'ज़की' ये प्यार ही पहचान बन गया मेरी मैं ख़ास हो गया उल्फ़त को आम करते हुए