ग़फ़लत में मिरी पुश्त पे जो वार करेगा ये काम करेगा तो मिरा याद करेगा लम्हे की हक़ीक़त को जो समझे वो सियाना नादाँ है अगर वक़्त को बेकार करेगा मुख़्लिस है तो मानेगा फ़ज़ीलत वो हमारी हासिद है तो सच्चाई से इंकार करेगा तलवार से दिल जीत नहीं पाएँगे हरगिज़ ये काम तो बस आप का किरदार करेगा इस दौर का सच्चा वही फ़नकार है 'साजिद' सोए हुए ज़ेहनों को जो बेदार करेगा