हैं सियह अब्र के साए तिरे गेसू की तरह जल्वा-गर क़ौस-ए-क़ुज़ह है तिरे अबरू की तरह ज़ेहन-ओ-दिल होश-ओ-ख़िरद फ़हम-ओ-शुऊ'र-ओ-इदराक ले गई उन की नज़र लूट के जादू की तरह मैं तो कुछ भी नहीं ज़ुल्मत-कदा-ए-हस्ती में हूँ फ़क़त एक चमकते हुए जुगनू की तरह माह-ए-नौ का नज़र आता है फ़लक पर जो दिमाग़ हू-बहू जल्वागरी है तिरी अबरू की तरह जाने क्या टूटता रहता है मिरे सीने में गूँज आती है छनकते हुए घुँगरू की तरह इक न इक दिन मुझे महसूस किया जाना है मैं चमन में हूँ बिखरती हुई ख़ुशबू की तरह वक़्त की आँख से क्या जानिए कब गिर जाऊँ मैं हूँ पलकों पे लरज़ते हुए आँसू की तरह तुम ने देखा तो लगा तुम को दिवाना 'साजिद' हम ने देखा तो दिखाई दिया साधू की तरह