ग़ैर हो नाशाद क्यों कैसी कही चाहता हूँ दाद क्यों कैसी कही पहले गाली दी सवाल-ए-वस्ल पर फिर हुआ इरशाद क्यों कैसी कही तुम ने दिल की बात क्यों कैसी सुनी हम ने ये रूदाद क्यों कैसी कही माँगते थे मेरे मिलने की दुआ वो भी दिन हैं याद क्यों कैसी कही तू भी ऐ नासेह किसी पर जान दे हाथ ला उस्ताद क्यों कैसी कही 'दाग़' तुझ को बाग़-ए-जन्नत हो नसीब ख़ानुमाँ-बर्बाद क्यों कैसी कही