ग़ैर क्या जाने तुझ को क्या समझे हम तो अपना तुझे ख़ुदा समझे वो मुआफ़िक़ हो या मुख़ालिफ़ हो दामन-ए-दोस्त की हवा समझे किस के वो दर पे जाए क्यों जाए जो तुझे अपना आसरा समझे तेरे महबूब के मरातिब को अंबिया समझे औलिया समझे हर सितम को तिरे करम जाना हर जफ़ा को तिरी अदा समझे कोई किस तरह इस ज़माने में किस को अच्छा किसे बुरा समझे तू भलाई पे रख नज़र 'ज़मज़म' लाख तुझ को कोई बुरा समझे