जब भी हमें कुछ इश्क़ का हासिल नज़र आया दर-पर्दा कोई अपने मुक़ाबिल नज़र आया जैसे कि बहार आ गई उजड़े हुए घर में जब दामन-ए-दिल से कोई वासिल नज़र आया इक साँस लिया था अभी आज़ाद फ़ज़ा में फिर सिलसिला-ए-तौक़-ओ-सलासिल नज़र आया गुज़रा जो तिरी राहगुज़र से कभी ऐ दोस्त हर ज़र्रा से लिपटा हुआ इक दिल नज़र आया छेड़ो न मुझे मैं भी उसी दर का गदा हूँ हर एक तवंगर जहाँ साइल नज़र आया दुनिया-ए-मोहब्बत में न पूछ हम से कि हम को जीना ही नहीं मरना भी मुश्किल नज़र आया कहला के ग़ज़ल हम से जो पढ़ता रहा कल तक कहते हैं तग़ज़्ज़ुल में वो कामिल नज़र आया