ग़म ले के मसर्रत का समाँ हम ने बनाया अश्कों से सितारों का जहाँ हम ने बनाया बे-क़द्र बना रक्खा था अग़्यार ने जिस को इस बार अमानत को गिराँ हम ने बनाया नज़रों में तो बुत-ख़ाने का बुत-ख़ाना था लेकिन दिल दे के तुम्हें रश्क-ए-बुताँ हम ने बनाया ख़ुद तो न रहे अंजुमन-ए-नाज़ के क़ाबिल हाँ तेरे लिए दिल का मकाँ हम ने बनाया लो आग लगा बैठे हमारे ही जिगर में महफ़िल में जिन्हें शो'ला-बयाँ हम ने बनाया गुफ़्तार का मैदान तुम्हारा सही लेकिन अल्फ़ाज़ को शायान-ए-ज़बाँ हम ने बनाया आदाब नए हम ने दिए राह-रवी को ठोकर को भी इक संग-ए-निशाँ हम ने बनाया बे-कैफ़ी-ए-महफ़िल में भी ये शोख़ी-ए-मस्ती दिल टूटा तो इक रत्ल-ए-गिराँ हम ने बनाया होंटों पे लगी मुहर तो नैरंग-ए-नज़र से इक मा'रका-ए-लफ़्ज़-ओ-बयाँ हम ने बनाया उस ने ही भरा ज़ह्र से पैमाना हमारा 'जौहर' वो जिसे पीर-ए-मुग़ाँ हम ने बनाया