अंजुमन हो गई सरगर्म-ए-बयाँ मेरे बाद बे-ज़बानों ने भी खोली है ज़बाँ मेरे बाद कौन घर अपना जलाएगा पए-दीदन-ए-बर्क़ उठने पाएगा न गुलशन से धुआँ मेरे बाद किस को आता है जले दिल से दुआएँ देना मिट के रह जाएगी ये रस्म-ए-फ़ुग़ाँ मेरे बाद ग़म्ज़ा-ओ-नाज़ से अब छेड़ कहाँ होती है चलिए पुर-अम्न हुआ शहर-ए-बुताँ मेरे बाद आसमाँ सर-ब-गरेबाँ है ज़मीं ख़ाक-ब-सर चश्मकें किस से करे काहकशाँ मेरे बाद ढूँडते आएँगे पाकान-ए-तमन्ना 'जौहर' मेरे बहके हुए क़दमों के निशाँ मेरे बाद