ग़म ने ये सौत के मिरी हालत तबाह की बैठी तो दिल को थाम के उट्ठी तो आह की हत-छट हो तुम अगर तो हूँ मैं भी ज़बाँ-दराज़ फिर कौन सी है शक्ल बताओ निबाह की दरवाज़ा इस तरफ़ को करेंगे ज़रूर वो ये तो बताओ तुम ने भी कुछ इस की राह की जाती थी हज को राह में बद्दू जो आ पड़े दौलत समझ के ले गए गठरी गुनाह की यूँ चाँद ख़ाँ पड़े रहे बीमार साल भर छुट्टी न ली मियाँ ने मगर एक माह की ऐसे शराब-ख़्वार ख़सम पर ख़ुदा की मार मैके से मैं जो लाई थी दौलत तबाह की लैला अकल-खुरी ने न ली उस की कुछ ख़बर मजनूँ को आरज़ू ही रही अपने ब्याह की लड़की कहीं फ़लक पे ना जुड़ती थी सांड को अब चँद-ओ-गीत गाए न लड़ के बियाह की ये जान का अज़ाब फ़रिश्ते गले पड़े मरने पे भी न पाई बुआ जा पनाह की आती है उठते बैठते 'शैदा' लबों पे जान जा कर जवानी खोल गई राह आह की