हाल दुनिया में हुआ रहम के क़ाबिल अपना न ख़सम अपना है बाजी न मुआ दिल अपना कैसे कहते हो नहीं कोई मुक़ाबिल अपना ऐ जी सीने में टटोलो तो ज़रा दिल अपना हौसला क्या करूँ दिखलाऊँ मैं क्या दिल अपना मर्दुआ भी तो हो गुय्यां किसी क़ाबिल अपना वक़्त की अपने मैं लैला हूँ वो मजनूँ गुय्यां और क्या चाहिए छप जाएगा नॉवेल अपना इस से ज़्यादा तो मैं हब्बा नहीं देने की उन्हें घर में बैठी वो निकाला करें फ़ाज़िल अपना सब्र बंदी का समेटा किए मरते मरते क़ब्र में उन की फ़रिश्ता न हो नाज़िल अपना चार के काँधे पे बोली ये बहिश्ती बीबी पाँव भी घर से जो निकला तो ब-मुश्किल अपना एक से लाख तक इंकार नहीं करने की ला के दिखलाएँ तो मुझ को वो ज़रा बिल अपना कहीं आँखों से न ओझल कोई तिनका हो जाए रखें अस्बाब निगाहों में वो तिल तिल अपना सासें दुनिया में कहीं सच्ची हुई हैं बेटा हम भी झूटे सही दावा भी है बातिल अपना रात चर्राई थी फिर अगली मोहब्बत उन की मुझ को पढ़ पढ़ के सुनाया किए नॉवेल अपना जोंक पत्थर में नहीं लगती है ये सच है मगर कैसे कर ले कोई तेरा सा मुए दिल अपना एक से एक ज़माने में पड़े हैं 'शैदा' कैसे कहते हो नहीं कोई मुक़ाबिल अपना