ग़म उठाने के वास्ते दम है ज़िंदगी है अगर तो क्या ग़म है कहते हो कुछ कहो कहूँ क्या ख़ाक जानता हूँ मिज़ाज बरहम है गिर्या-ए-बे-असर की कुछ हद भी हम हैं और आज चश्म-ए-पुर-नम है क्या नए दोस्तों से बिगड़ी आज दुश्मनों का कुछ और आलम है मुझ को देखा तो ग़ैर से ये कहा उम्र इस नौजवान की कम है गर ख़ुशी है तो वस्ल की है ख़ुशी ग़म अगर है तो हिज्र का ग़म है सुनते हैं 'दाग़' कल वो आए थे बारे अब तो सुलूक बाहम है