ग़ुर्बत के रंज फ़ाक़ा-कशी के मलाल खींच ऐ 'दाग़' पर ज़माने से दस्त-ए-सवाल खींच नाज़ुक बहुत है रिश्ता-ए-उल्फ़त न टूट जाए इतना न अपने आप को ऐ मह-जमाल खींच हो जाए तू न ताइर-ए-दिल की तरह असीर सय्याद अपनी सम्त को आहिस्ता जाल खींच खींची थी जब मुसव्विर-ए-क़ुदरत ने दिल की शक्ल कहता ये कौन तू न इसे बे-ख़याल खींच वो ठंडे ठंडे चैन से घर को चले गए ले और आह-ए-सर्द दिल-ए-पुर-मलाल खींच नासेह क़िमार-गाह-ए-मोहब्बत में जी न हार दिल को लगा के नफ़अ' उठा ख़ूब माल खींच ऐ 'दाग़' जज़्ब-ए-इश्क़ की देखेंगे अब कशिश की उस कशीदा-रू ने तो हम से कमाल खींच