घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना फिर सफ़र नाकाम हो जाए तो घर की सोचना हिज्र में इम्कान इतने वस्ल सिर्फ़ इक वाक़िआ वुसअत-ए-सहरा में क्या दीवार-ओ-दर की सोचना यानी घर और दश्त दोनों लाज़िम-ओ-मलज़ूम हैं क़ाएदा ये है इधर रहना उधर की सोचना इस तरह जीना कि औरों का भरम क़ाएम रहे मौत बर-हक़ है मगर उस चारा-गर की सोचना ज़िंदगी भर ज़िंदा रहने की यही तरकीब है उस तरफ़ जाना नहीं बिल्कुल जिधर की सोचना तुम शुजा-ख़ावर हो दुनिया-दार और मैं जान-दार मैं तो बस आहें भरूँगा तुम असर की सोचना