मुझ में अब नहीं बाक़ी हौसला बिछड़ने का मुल्तजी हूँ देना मत इंदिया बिछड़ने का इस से बढ़ के क्या होता ज़िंदगी के दामन में एक ग़म है होने का दूसरा बिछड़ने का प्यार और तवक़्क़ो के सिलसिले न बढ़ जाएँ इस जगह मुनासिब है सोचना बिछड़ने का आप की सुहूलत बस हम अज़ीज़ रखते हैं माँग लो अता होगा रास्ता बिछड़ने का हर मिलन जुदाई की अव्वलीन मंज़िल है वस्ल ही से जुड़ता है सिलसिला बिछड़ने का बे-सुकून शामों से बे-यक़ीन सुब्हों तक तय हुआ है आख़िर हर मरहला बिछड़ने का भाँप तो गए थे हम साथ आरज़ी है ये जान-ए-मन मगर फिर भी दुख हुआ बिछड़ने का