घर में कैसा शफ़क़िस्ताँ का समाँ था पहले मौज-ए-सद-रंग में बे-ख़्वाब जहाँ था पहले किस खंडर में हमें महबूस हवा ले आई शब के सीने में भी महफ़ूज़ मकाँ था पहले बादबाँ कश्तियाँ फिर मौज-ए-हवा की रौनक़ कौन किस हाल में और कौन कहाँ था पहले ज़ीना-ए-शाम पे रक्खा है चराग़-ए-ख़स्ता जिस की रग रग में रवाँ ज़र्द धुआँ था पहले अब तरफ़ ता-बा-तरफ़ छाई है बस गुम-शुदगी इस्तिआरा है अलामत है अयाँ था पहले