घरानों से मोहब्बत की फ़ज़ाएँ छीन लेते हैं सितमगर फूल से बच्चों की माएँ छीन लेते हैं हमारे बादशाहों को है नफ़रत शोर से इतनी कि मज़लूमों से रोने की सदाएँ छीन लेते हैं कहीं हैं कुफ़्र के फ़तवे कहीं शोर-ए-मलामत है ख़ुदा जब लोग बन जाएँ जज़ाएँ छीन लेते हैं इलाही तेरी बस्ती में ये कैसे लोग बस्ते हैं सरों पर हाथ रखते हैं रिदाएँ छीन लेते हैं किसी मुफ़्लिस की मजबूरी किसी की भूक का सौदा ख़ुदा के नाम पर ज़ालिम क़बाएँ छीन लेते हैं ज़बान-ए-नर्म से करते हैं पहले प्यार की बातें बुला कर पास फिर जबरन हयाएँ छीन लेते हैं मिरी खिड़की के आगे लोग उठा देते हैं दीवारें मिरे कमरे के हिस्से की हवाएँ छीन लेते हैं मोहब्बत ढेर पर कचरे के हर इक जा बिलकती है कि तोहमत बाँटने वाले वफ़ाएँ छीन लेते हैं बताओ किस तरह 'तश्ना' यहाँ सैराब हो कोई समुंदर ख़ुश्क सहरा से घटाएँ छीन लेते हैं