ग़रज़-कि मोरिद-ए-इल्ज़ाम हो गया मैं भी किसी के साथ में बदनाम हो गया मैं भी रहा मैं गर्दिश-ए-दौराँ के साथ गर्दिश में शरीक-ए-गर्दिश-ए-अय्याम हो गया मैं भी वो एक शोरिश-ए-सर थी कि दार तक पहूँचा वो इब्तिदा थी तो अंजाम हो गया मैं भी अजब असर हुआ सोहबत का उन हसीनों की गुलों में क्या रहा गुलफ़ाम हो गया मैं भी मैं अपनी आग में जलता रहा हूँ मिस्ल-ए-शम्स न क्यों ग़ुरूब सर-ए-शाम हो गया मैं भी नतीजा देख लिया मैं ने इश्क़ का शाहिद हर एक काम में नाकाम हो गया मैं भी