घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता बढ़ेगा आशिक़ी का ए'तिबार आहिस्ता आहिस्ता बहुत नादिम हुए आख़िर वो मेरे क़त्ल-ए-नाहक़ पर हुई क़द्र-ए-वफ़ा जब आश्कार आहिस्ता आहिस्ता जिला-ए-शौक़ से आईना-ए-तस्वीर-ए-ख़ातिर में नुमायाँ हो चला रू-ए-निगार आहिस्ता आहिस्ता मोहब्बत की जो फैली है ये निकहत बाग़-ए-आलम में हुई है मुंतशिर ख़ुशबू-ए-यार आहिस्ता आहिस्ता दिल ओ जान ओ जिगर सब्र ओ ख़िरद जो कुछ है पास अपने ये सब कर देंगे हम उन पर निसार आहिस्ता आहिस्ता अजब कुछ हाल हो जाता है अपना बे-क़रारी से बजाते हैं कभी जब वो सितार आहिस्ता आहिस्ता असर कुछ कुछ रहेगा वस्ल में भी रंज-ए-फ़ुर्क़त का दिल-ए-मुज़्तर को आएगा क़रार आहिस्ता आहिस्ता न आएँगे वो 'हसरत' इंतिज़ार-ए-शौक़ में यूँही गुज़र जाएँगे अय्याम-ए-बहार आहिस्ता आहिस्ता