फ़ैज़-ए-मोहब्बत से है क़ैद-ए-मिहन मेरे लिए एक बला-ए-हसन शाम-ए-ग़रीबाँ के बराबर कहाँ मज़हब-ए-उश्शाक़ में सुब्ह-ए-वतन आह वो ग़ारतगर-ए-सब्र-ओ-शकेब सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ शिकन दर शिकन फ़ित्ना-ए-जाँ वो सुख़न-ए-दिल-पज़ीर दुश्मन-ए-दीं वो निगह-ए-सहर-फ़न जल्वा-ए-जानाँ से है दार-उस-सुरूर ख़ाना-ए-जाँ अब नहीं बैत-उल-हुज़न मेहर ओ मुरव्वत से तुम्हें वास्ता ये भी हरीफ़ों का है इक हुस्न-ए-ज़न जब से कहा इश्क़ ने 'हसरत' मुझे कोई भी कहता नहीं फ़ज़ल-उल-हसन