ग़ौर से तू दिल के अंदर देख ले एक क़तरे में समुंदर देख ले लौट कर क्या जाने फिर कब आएगा इक नज़र इस घर को जी भर देख ले कोई रखवाला है तेरे साथ साथ अब न खाएगा तुझे डर देख ले उस का ज़िम्मा है कि होगा कामयाब फल बिना ही काम कर के देख ले वाहिमा इंसाँ का है वजह-ए-फ़साद कोई मस्जिद कोई मंदर देख ले वो जो मिलने को है मुझ से बे-क़रार आस्तीं में उस की ख़ंजर देख ले घर तिरा है किस जगह मैं क्या कहूँ ख़ुद हूँ इक अर्से से बे-घर देख ले