शब की तन्हाई में उन को याद कर लेता हूँ मैं है ज़बाँ ख़ामोश पर फ़रियाद कर लेता हूँ मैं चौदहवीं शब का क़मर जब चर्ख़ पर हँसने लगे शूमी-ए-क़िस्मत को फिर से याद कर लेता हूँ मैं कुछ हुजूम-ए-याद से कुछ आरज़ू-ए-दीद से ज़िंदगी को इस तरह बर्बाद कर लेता हूँ मैं चश्म-ए-नम ने सोज़-ए-दिल को कर दिया है आश्कार ये नहीं शिकवा सनम फ़रियाद कर लेता हूँ मैं आज तक बर्बाद था 'महशर' है अब उस को सुकूँ दिल की वीरानी को ख़ुद आबाद कर लेता हूँ मैं